Sunita gupta

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दैनिक प्रतियोगिता हेतु स्वैच्छिक विषय अजनबी

अजनबी कन्हैया तुम क्यों बने हो ,ये विरह वेदना कह रही है ।

सुनती हूं तेरी महिमा ,तेरे गुण रोज गाती हैं दिल को सुकून मिलता है।
मेरे मन मोहन ,मेरे चित चोर कन्हैया कभी मेरा साथ न छोड़ना।
ये दिल मेरा सुनता तेरी रहमत सब पे बरस जाए चैन मिल जाए।
एक बूंद तेरी मिल जाए मेरी किस्मत ही बदल जाए मोहन ।
अजनबी तुम न बन ना कभी ,हमेशा दिल मे रहना प्रभू।

ये मेरा मन बहुत चंचल है कैसे तुझको ध्याओ मै ।
जितना इसको समझाती हूं उतना ही बिफर जाता है।
तुम आकर मोहना थोड़ा धीरज बंधा जाओ।
बहुत बरसों से इंतजार मे बैठी हूं ,मेरी तकदीर चमका जाओ।
अपने चरणों का दास बना ले मुझे तेरे चरण मे बसेरा मिल जाए ।
मेरी बिगड़ी बना जाओ मेरे प्यारे कन्हैया ,तुम बिन मेरा कोई न है ।

अपनी नजरो से न कभी तुम गिराना मुझे दुनिया  की नजरों 
की परवाह नही मुझे ,मेरा जीवन संवार जाओ मोहन ।
मुझे तेरी डाट मंजूर है मोहन पर अपनी नजरे न फेरना मोहन।
मेरी अंतिम इच्छा है जब सास छूटे मेरी तुम मेरे सामने होना।
फिर उस वक्त अजनबी मत बन जाना तुम मोहन ।

सुनीता 

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4 Comments

Renu

07-Mar-2023 04:55 PM

👍👍💐

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Sant kumar sarthi

06-Mar-2023 11:56 AM

बहुत खूब

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Abhinav ji

06-Mar-2023 08:37 AM

Very nice

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